मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज), उत्तर प्रदेश में हुआ था। वे भारतीय हॉकी के सबसे महान खिलाड़ियों में से एक थे, जिन्हें "हॉकी के जादूगर" (The Wizard of Hockey) के नाम से जाना जाता है। उनका वास्तविक नाम ध्यान सिंह था, लेकिन उनकी खेल के प्रति समर्पण भावना और रात में चाँद की रोशनी में अभ्यास करने की आदत के कारण लोग उन्हें ध्यानचंद कहने लगे।
गणेश चतुर्थी भारत का एक प्रमुख धार्मिक पर्व है, जो विशेष रूप से महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व भगवान गणेश के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है, जिन्हें विघ्नहर्ता, बुद्धि और समृद्धि के देवता माना जाता है। गणेश चतुर्थी भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को आती है, जो आमतौर पर अगस्त या सितंबर में पड़ती है।
इस दिन लोग भगवान गणेश की प्रतिमा घरों और पंडालों में स्थापित करते हैं। प्रतिमा की स्थापना के बाद विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है। भक्त भगवान गणेश से अपने जीवन में सुख-समृद्धि, ज्ञान और बाधाओं को दूर करने की प्रार्थना करते हैं। इस दौरान गणपति बप्पा मोरया के जयकारे गूंजते हैं और वातावरण भक्तिमय हो जाता है।
गणेश चतुर्थी का सबसे खास आकर्षण है विसर्जन का दिन, जिसे अनंत चतुर्दशी कहते हैं। इस दिन भक्त बड़े हर्षोल्लास के साथ गणेश प्रतिमा को नदी, तालाब या समुद्र में विसर्जित करते हैं। इसे गणेश विसर्जन कहा जाता है।
लोकप्रिय प्रसाद मोदक, जो भगवान गणेश का प्रिय माना जाता है, इस पर्व का विशेष हिस्सा होता है। गणेश चतुर्थी न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह लोगों को एकता, प्रेम और समर्पण का संदेश भी देता है।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी हिंदू धर्म का एक प्रमुख और पवित्र त्योहार है। यह भगवान श्रीकृष्ण के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था, इसलिए इस दिन को जन्माष्टमी कहा जाता है। भगवान कृष्ण, विष्णु जी के आठवें अवतार माने जाते हैं। उनका जन्म मथुरा के कारागार में हुआ था। उनके माता-पिता का नाम वसुदेव और देवकी था।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, कंस नामक दुष्ट राजा देवकी का भाई था। उसे यह भविष्यवाणी सुनाई गई थी कि देवकी की आठवीं संतान उसका अंत करेगी। इसलिए उसने देवकी और वसुदेव को कारागार में डाल दिया और उनकी छह संतानों को मार डाला। सातवीं संतान बलराम को सुरक्षित रखा गया और आठवीं संतान के रूप में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ।
श्रीकृष्ण का जन्म अर्धरात्रि को हुआ। उनके जन्म के समय कारागार के पहरेदार सो गए और सभी बंधन खुल गए। वसुदेव जी ने श्रीकृष्ण को एक टोकरी में रखा और यमुना नदी पार करके गोकुल पहुँचाया। वहाँ नंदबाबा और यशोदा जी ने उनका पालन-पोषण किया। बचपन में श्रीकृष्ण ने कई चमत्कार किए। उन्होंने पूतना, शेषनाग और कालिया नाग जैसे राक्षसों का वध किया।
जन्माष्टमी के दिन लोग उपवास रखते हैं और मध्यरात्रि में श्रीकृष्ण की आरती करके उनका जन्मोत्सव मनाते हैं। मंदिरों को सुंदर फूलों और रोशनी से सजाया जाता है। झूलों में बालकृष्ण की प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं। भक्तजन भजन-कीर्तन करते हैं और ‘हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की’ के जयकारे लगाते हैं।
महाराष्ट्र में इस दिन ‘दही-हांडी’ की परंपरा है। इसमें लोग ऊंचाई पर लटकी मटकी को फोड़ते हैं, जो श्रीकृष्ण के माखन चोरी की लीलाओं का प्रतीक है। उत्तर प्रदेश के मथुरा और वृंदावन में इस पर्व का विशेष महत्व है। यहाँ विशाल मेले और झांकियां निकलती हैं।
श्रीकृष्ण का जीवन हमें धर्म, प्रेम, मित्रता और कर्तव्य का संदेश देता है। उन्होंने गीता के माध्यम से कर्मयोग का उपदेश दिया। जन्माष्टमी न केवल एक धार्मिक त्योहार है, बल्कि यह हमें भक्ति और नैतिकता का मार्ग दिखाता है।
इस प्रकार, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी आनंद, भक्ति और उत्साह का प्रतीक है, जिसे पूरे भारतवर्ष और विश्वभर में श्रद्धा एवं उत्साह से मनाया जाता है।
स्वतंत्रता दिवस हर वर्ष 15 अगस्त को भारत में मनाया जाता है, ताकि 1947 में देश को ब्रिटिश शासन से मिली आज़ादी को स्मरण किया जा सके। यह गर्व, स्मरण और एकता का दिन है। इस दिन प्रधानमंत्री लाल किले पर राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं, राष्ट्रगान गाया जाता है और प्रेरणादायक भाषण होते हैं। पूरे देश मेंस्कूलों,कार्यालयों और समुदायों में सांस्कृतिक कार्यक्रम, देशभक्ति गीत, परेड और ध्वजारोहण के आयोजन होते हैं।
यह अवसर हमें महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह जैसे असंख्य स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान की याद दिलाता है, जिन्होंने आज़ादी के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।यह हमें देश की प्रगति, एकता और अखंडता के लिए कार्य करने की प्रेरणा देता है। स्वतंत्रता दिवस केवल हमारे अतीत का उत्सव नहीं, बल्कि लोकतंत्र, समानता और न्याय के मूल्यों को आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाने का संकल्प भी है।
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डॉ. शियाली रामामृत रंगनाथन (1892–1972) को भारत में पुस्तकालय विज्ञान का पिता कहा जाता है। उनका जन्म 12 अगस्त 1892 को तमिलनाडु के शियाली नगर में हुआ था। प्रारंभ में वे गणित के प्रोफेसर थे, लेकिन 1924 में उन्हें मद्रास विश्वविद्यालय का लाइब्रेरियन नियुक्त किया गया। यहीं से उनका जीवन पुस्तकालय और ज्ञान के संगठन को समर्पित हो गया।
रंगनाथन ने 1931 में पुस्तकालय विज्ञान के पाँच नियम प्रस्तुत किए। ये नियम थे:
पुस्तकें उपयोग के लिए हैं।
हर पाठक के लिए पुस्तक।
हर पुस्तक के लिए पाठक।
पाठक का समय बचाओ।
पुस्तकालय एक बढ़ता हुआ जीव है।
ये सिद्धांत आज भी दुनिया के सभी पुस्तकालयों की नींव माने जाते हैं।
1933 में उन्होंने Colon Classification System विकसित किया, जो ज्ञान के संगठन की एक वैज्ञानिक और लचीली पद्धति है। यह प्रणाली Dewey Decimal System से अधिक व्यावहारिक और विस्तृत मानी जाती है।
उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय में पुस्तकालय विज्ञान की शिक्षा को बढ़ावा दिया। 1962 में उन्होंने बेंगलुरु में Documentation Research and Training Centre (DRTC) की स्थापना की, जो सूचना विज्ञान और दस्तावेज़ीकरण के क्षेत्र में एक प्रमुख संस्थान है।
उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें 1957 में पद्मश्री से सम्मानित किया। 1965 में उन्हें राष्ट्रीय शोध प्रोफेसर (Library Science) की उपाधि दी गई।
डॉ. रंगनाथन केवल एक लाइब्रेरियन नहीं थे, बल्कि एक दूरदर्शी विचारक, शिक्षक और ज्ञान के सच्चे साधक थे। उनके प्रयासों ने भारतीय पुस्तकालयों को आधुनिक स्वरूप दिया और विश्वभर में उनकी पहचान बनाई।
उनकी स्मृति में 12 अगस्त, उनके जन्मदिवस को हर वर्ष राष्ट्रीय पुस्तकालय दिवस (National Librarian’s Day) के रूप में मनाया जाता है।
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हिरोशिमा दिवस और नागासाकी दिवस
हिरोशिमा दिवस (6 अगस्त) और नागासाकी दिवस (9 अगस्त) विश्वभर में उन परमाणु बम हमलों की याद में मनाए जाते हैं, जो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1945 में जापान पर हुए थे। ये दिन परमाणु युद्ध के विनाशकारी परिणामों और शांति एवं निरस्त्रीकरण की आवश्यकता के गंभीर प्रतीक हैं।
मुंशी प्रेमचंद हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय प्रसिद्ध लेखक तथा उपन्यासकार में से एक हैं। उनका जन्म का नाम धनपत राय श्रीवास्तव था, उन्होंने अपने दुसरे नाम “नवाब राय” के नाम से अपने लेखन की शुरुवात की लेकिन बाद में उन्होंने अपने नाम को बदलकर “प्रेमचंद” रखा। वे एक सफल लेखक, देशभक्त नागरिक, कुशल वक्ता, ज़िम्मेदार संपादक और संवेदनशील रचनाकार थे। उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें ‘उपन्यास सम्राट’ कहकर संबोधित किया था।