डॉ. शियाली रामामृत रंगनाथन (1892–1972) को भारत में पुस्तकालय विज्ञान का पिता कहा जाता है। उनका जन्म 12 अगस्त 1892 को तमिलनाडु के शियाली नगर में हुआ था। प्रारंभ में वे गणित के प्रोफेसर थे, लेकिन 1924 में उन्हें मद्रास विश्वविद्यालय का लाइब्रेरियन नियुक्त किया गया। यहीं से उनका जीवन पुस्तकालय और ज्ञान के संगठन को समर्पित हो गया।
रंगनाथन ने 1931 में पुस्तकालय विज्ञान के पाँच नियम प्रस्तुत किए। ये नियम थे:
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पुस्तकें उपयोग के लिए हैं।
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हर पाठक के लिए पुस्तक।
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हर पुस्तक के लिए पाठक।
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पाठक का समय बचाओ।
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पुस्तकालय एक बढ़ता हुआ जीव है।
ये सिद्धांत आज भी दुनिया के सभी पुस्तकालयों की नींव माने जाते हैं।
1933 में उन्होंने Colon Classification System विकसित किया, जो ज्ञान के संगठन की एक वैज्ञानिक और लचीली पद्धति है। यह प्रणाली Dewey Decimal System से अधिक व्यावहारिक और विस्तृत मानी जाती है।
उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय में पुस्तकालय विज्ञान की शिक्षा को बढ़ावा दिया। 1962 में उन्होंने बेंगलुरु में Documentation Research and Training Centre (DRTC) की स्थापना की, जो सूचना विज्ञान और दस्तावेज़ीकरण के क्षेत्र में एक प्रमुख संस्थान है।
उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें 1957 में पद्मश्री से सम्मानित किया। 1965 में उन्हें राष्ट्रीय शोध प्रोफेसर (Library Science) की उपाधि दी गई।
डॉ. रंगनाथन केवल एक लाइब्रेरियन नहीं थे, बल्कि एक दूरदर्शी विचारक, शिक्षक और ज्ञान के सच्चे साधक थे। उनके प्रयासों ने भारतीय पुस्तकालयों को आधुनिक स्वरूप दिया और विश्वभर में उनकी पहचान बनाई।
उनकी स्मृति में 12 अगस्त, उनके जन्मदिवस को हर वर्ष राष्ट्रीय पुस्तकालय दिवस (National Librarian’s Day) के रूप में मनाया जाता है।

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