जनजातीय गौरव दिवस : एक परिचय (500 शब्द)
भारत विविधताओं से भरा हुआ देश है जहाँ अनेक जनजातियाँ अपने विशिष्ट संस्कृति, परंपराओं और जीवन मूल्यों के साथ देश की समृद्धि में योगदान देती हैं। देश के जनजातीय समाज ने स्वतंत्रता संग्राम से लेकर सामाजिक उत्थान तक हर क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनके साहस, त्याग और संघर्ष को सम्मान देने के लिए भारत सरकार ने 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। यह दिन विशेष रूप से भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पर मनाया जाता है, जो एक महान स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक और जनजातीय अस्मिता के प्रतीक थे।
जनजातीय गौरव दिवस का उद्देश्य देश के जनजातीय समुदायों के इतिहास, उनके संघर्षों और उनकी सांस्कृतिक धरोहर को समाज के समक्ष उजागर करना है। यह दिवस केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि भारत के उन मूल निवासी समुदायों के योगदान को राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार करने का एक सशक्त माध्यम है, जिनके बारे में सामान्यतः बहुत कम जानकारी रहती है।
भारत की जनजातियाँ जैसे संथाल, भील, गोंड, उरांव, खासी, नागा, मिजो आदि सदियों से प्रकृति के साथ सामंजस्य में जीवन जीती आई हैं। उनका जीवन प्रकृति-प्रेम, सहयोग, समानता और श्रम-प्रधान संस्कृति का प्रतीक है। जनजातीय समाज के ये मूल्य आज के समय में भी मानवता को नई दिशा प्रदान करते हैं। उनकी पारंपरिक कला, संगीत, हस्तकला, नृत्य और रीति-रिवाज भारतीय सांस्कृतिक विरासत को और भी समृद्ध बनाते हैं।
इस दिन विद्यालयों, सरकारी संस्थानों और समाजिक संगठनों में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनमें जनजातीय नृत्य, कला प्रदर्शनी, निबंध प्रतियोगिताएँ, भाषण और नाटक शामिल होते हैं। इन गतिविधियों के माध्यम से बच्चों और युवाओं को जनजातीय समाज के गौरवशाली इतिहास से परिचित कराया जाता है। इसके साथ ही सरकार द्वारा जनजातीय जीवन के विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक सशक्तिकरण हेतु चलाई जा रही योजनाओं की जानकारी भी साझा की जाती है।
जनजातीय गौरव दिवस की मुख्य प्रेरणा भगवान बिरसा मुंडा की अद्भुत जीवन गाथा है। बिरसा मुंडा ने ‘उलगुलान’ यानी महान आंदोलन के माध्यम से अंग्रेजों के शोषण, ज़मींदारी प्रथा और सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध संघर्ष किया। उन्होंने जनजातीय समाज को एकजुट होने, शिक्षा अपनाने और अपने अधिकारों के लिए लड़ने का संदेश दिया। मात्र 25 वर्ष के अल्प जीवन में उन्होंने जो परिवर्तन लाए, वे आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं।
अतः जनजातीय गौरव दिवस हमें जनजातीय समाज के गौरव, उनके अमूल्य योगदान और उनके अधिकारों के प्रति सजग होने का अवसर प्रदान करता है। यह दिवस राष्ट्रीय एकता को मजबूत करता है और हमें यह स्मरण दिलाता है कि भारत की असली शक्ति उसकी विविधता और सांस्कृतिक समृद्धि में निहित है। जनजातीय गौरव दिवस मनाकर हम न केवल इतिहास को सम्मान देते हैं, बल्कि भविष्य के प्रति अपने कर्तव्य को भी निभाते हैं।
भगवान बिरसा मुंडा : जनजातीय अस्मिता के महानायक
भगवान बिरसा मुंडा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और जनजातीय समाज के इतिहास के सबसे महान, प्रेरणादायी और साहसिक व्यक्तित्वों में से एक थे। उनका जन्म 15 नवंबर 1875 को वर्तमान झारखंड के उलीहातु गाँव में हुआ था। वे मुंडा जनजाति से सम्बन्ध रखते थे, जो अपनी परंपराओं, संस्कृति और प्रकृति-प्रधान जीवन शैली के लिए प्रसिद्ध है।
बिरसा मुंडा बचपन से ही अत्यंत बुद्धिमान, तेजस्वी और नेतृत्व गुणों से परिपूर्ण थे। उन्होंने कम उम्र में ही समाज की समस्याओं, अंग्रेजों के अन्याय और जमींदारों के अत्याचारों को समझा। जनजातीय समाज के लोगों की जमीनें छीन ली जा रही थीं, उन्हें जबरन मजदूरी करवायी जाती थी और उनकी संस्कृति को नष्ट किया जा रहा था। इन परिस्थितियों ने बिरसा मुंडा को अपने समाज को संगठित करने और उनके अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया।
उनकी शिक्षा मिशन स्कूल में हुई, जहाँ से उन्होंने समाज सुधार के विचार ग्रहण किए। परंतु उन्होंने यह भी देखा कि किस प्रकार विदेशी शासन और मिशनरियों के कारण जनजातीय संस्कृति पर प्रभाव पड़ रहा था। उन्होंने जनजातीय समाज को अपने आदिवासी धर्म, परंपरा और पहचान को बनाए रखने का संदेश दिया।
बिरसा मुंडा ने लोगों को जागरूक किया और उनके बीच एक नई चेतना जगाई। उन्होंने ‘उलगुलान’ अर्थात महान आंदोलन का नेतृत्व किया। यह आंदोलन अंग्रेजों और ज़मींदारों के अन्याय के खिलाफ था। इस आंदोलन का उद्देश्य था—
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जनजातियों की जमीनों की रक्षा
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जबरन मजदूरी और कर प्रथा को खत्म करना
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सामाजिक कुरीतियों को समाप्त करना
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अपनी संस्कृति और पहचान को पुनर्जीवित करना
जनजातीय समाज उन्हें 'धरती आबा' यानी धरती पिता कहकर सम्मान देता है। बिरसा मुंडा ने अपने अल्प जीवन में समाज में व्यापक बदलाव लाए। वे न केवल एक योद्धा थे, बल्कि एक समाज सुधारक, आध्यात्मिक गुरु और प्रेरणादायक नेता भी थे।
अंग्रेज सरकार उनके बढ़ते प्रभाव से घबरा गई थी। उन्होंने बिरसा को कई बार गिरफ्तार किया, आखिरकार 1900 में रांची जेल में रहस्यमयी परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई। उस समय वे केवल 25 वर्ष के थे। छोटे जीवन में उन्होंने जो महान कार्य किए, वह आज भी असंख्य लोगों को प्रेरित करते हैं।
भारत सरकार ने उनके सम्मान में कई स्थानों, संस्थानों, योजनाओं और स्मारकों का निर्माण किया है। उनकी जयंती 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाई जाती है, जिससे हर भारतीय को उनके योगदान की याद दिलाई जा सके।
बिरसा मुंडा का जीवन हमें सिखाता है कि साहस, नेतृत्व और दृढ़ निश्चय से कोई भी कठिनाई जीती जा सकती है। वे सदैव भारतीय इतिहास में जनजातीय गौरव, स्वतंत्रता और अस्मिता के प्रतीक के रूप में अमर रहेंगे।


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