गुरु नानक देव जी सिख धर्म के संस्थापक और पहले गुरु थे। उनका जीवन, उपदेश और कर्म मानवता के लिए एक अमूल्य प्रेरणा हैं। आइए उनके बारे में विस्तार से जानते हैं —
🌼 जीवन परिचय
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पूरा नाम: गुरु नानक देव जी
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जन्म तिथि: 15 अप्रैल 1469 (कार्तिक पूर्णिमा के दिन)
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जन्म स्थान: तलवंडी (अब ननकाना साहिब, पाकिस्तान में)
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पिता का नाम: मेहता कालू जी
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माता का नाम: माता तृप्ता जी
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जीवन काल: 1469 – 1539 ई.
🌸 मुख्य शिक्षाएँ (उपदेश)
गुरु नानक देव जी ने सिखाया कि ईश्वर एक है और हर जगह विद्यमान है। उन्होंने जाति, धर्म, ऊँच-नीच और भेदभाव का विरोध किया।
उनकी प्रमुख शिक्षाएँ थीं:
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"एक ओंकार" – ईश्वर एक है।
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सत नाम – सच्चा नाम ही ईश्वर है।
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किरत करो – ईमानदारी से काम करो।
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नाम जपो – प्रभु का सिमरण करो।
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वंड छको – जो कुछ मिले, उसे सबके साथ बाँटो।
🌿 महत्वपूर्ण योगदान
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उन्होंने सिख धर्म की नींव रखी।
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लंगर प्रथा (सामूहिक भोजन) की शुरुआत की, ताकि सबको समानता का अनुभव हो।
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उन्होंने चार दिशाओं में यात्राएँ (उदासियाँ) कीं, ताकि लोगों को सच्चे धर्म और मानवता का संदेश दिया जा सके।
🌼 उनका जीवन दर्शन
गुरु नानक जी ने कहा था —
“ना कोई हिंदू, ना कोई मुसलमान – सब मनुष्य एक ही ईश्वर की संतान हैं।”
उन्होंने यह सिखाया कि सच्चा धर्म किसी पूजा-पाठ में नहीं, बल्कि सच्चाई, करुणा और प्रेम में है।
🌟 मृत्यु और विरासत
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गुरु नानक देव जी का निधन 22 सितंबर 1539 को करतारपुर (पाकिस्तान) में हुआ।
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उनके बाद गुरु अंगद देव जी दूसरे सिख गुरु बने।
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आज भी विश्वभर में उनका जन्मदिन गुरु नानक जयंती (गुरुपर्व) के रूप में बहुत श्रद्धा से मनाया जाता है।
गुरु नानक जयंती सिख धर्म के संस्थापक और प्रथम गुरु गुरु नानक देव जी के जन्म दिवस के रूप में अत्यंत श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई जाती है। यह पर्व कार्तिक पूर्णिमा के दिन आता है, जो प्रायः अक्टूबर या नवंबर महीने में पड़ता है। इसे गुरुपर्व, प्रकाश पर्व या गुरुनानक प्रकाश उत्सव भी कहा जाता है।
गुरु नानक देव जी का जन्म सन् 1469 ईस्वी में तलवंडी गाँव (वर्तमान में पाकिस्तान के ननकाना साहिब) में हुआ था। उनके पिता का नाम मेहता कालू जी और माता का नाम माता तृप्ता जी था। बचपन से ही उनमें गहन आध्यात्मिकता और ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धा थी। वे बचपन से ही मानवता, समानता और सच्चाई के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते थे।
गुरु नानक देव जी ने मानव समाज में व्याप्त अंधविश्वासों, भेदभाव, पाखंड और जातिवाद का विरोध किया। उन्होंने सिखाया कि ईश्वर एक है, और वह हर जीव में विद्यमान है। उन्होंने तीन प्रमुख सिद्धांत दिए —
1️⃣ नाम जपो – परमात्मा का सिमरण करो।
2️⃣ किरत करो – ईमानदारी से अपना कार्य करो।
3️⃣ वंड छको – जो भी प्राप्त हो, उसे दूसरों के साथ बाँटो।
उनके उपदेशों में जीवन का गूढ़ सत्य छिपा है। उन्होंने कहा —
“ना कोई हिंदू, ना कोई मुसलमान, सब मनुष्य एक ही ईश्वर की संतान हैं।”
गुरु नानक देव जी ने अपने जीवनकाल में चार दिशाओं में लंबी यात्राएँ कीं, जिन्हें उदासियाँ कहा जाता है। इन यात्राओं के माध्यम से उन्होंने समाज में प्रेम, सेवा और समानता का संदेश फैलाया। उन्होंने लंगर प्रथा की शुरुआत की, ताकि समाज में ऊँच-नीच और जातिगत भेदभाव समाप्त हो सके।
गुरु नानक जयंती के अवसर पर गुरुद्वारों को फूलों और दीयों से सजाया जाता है। नगर कीर्तन निकाला जाता है जिसमें श्रद्धालु नारे, भजन और कीर्तन गाते हुए गुरु जी के संदेशों का प्रचार करते हैं। लंगर में सभी लोग बिना किसी भेदभाव के एक साथ बैठकर भोजन करते हैं, जो समानता और भाईचारे का प्रतीक है।
गुरु नानक देव जी का जीवन और उपदेश आज भी हमें सिखाते हैं कि सच्ची पूजा ईश्वर की नहीं, बल्कि मानवता की सेवा में निहित है।
🌟 निष्कर्ष
गुरु नानक जयंती केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह एक मानवता का उत्सव है। गुरु नानक देव जी के विचार आज भी समाज को सत्य, करुणा, समानता और प्रेम के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं। यदि हम उनके बताए सिद्धांतों को अपने जीवन में अपनाएँ, तो संसार में शांति और सद्भावना स्वतः स्थापित हो सकती है।


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