पैग़म्बर मोहम्मद साहब का जन्म और प्रारम्भिक जीवन
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जन्म तिथि और स्थान
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हज़रत मोहम्मद साहब का जन्म 12 रबी-उल-अव्वल, 571 ईस्वी को मक्का (आज का सऊदी अरब) में हुआ।
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इस वर्ष को "आम-उल-फील" यानी हाथियों का साल कहा जाता है। उस समय अब्रहा नामक शासक ने काबा को ढहाने के लिए हाथियों की सेना के साथ मक्का पर चढ़ाई की थी, लेकिन वह असफल रहा।
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परिवारिक पृष्ठभूमि
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उनके पिता अब्दुल्लाह का निधन जन्म से पहले ही हो चुका था।
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उनकी माता आमिना भी मोहम्मद साहब के मात्र 6 वर्ष की आयु में दुनिया से चल बसीं।
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इसके बाद उनका पालन-पोषण पहले दादा अब्दुल मुत्तलिब और बाद में चाचा अबू तालिब ने किया।
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युवावस्था
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मोहम्मद साहब बचपन से ही ईमानदार, सच्चे और नेक स्वभाव के थे।
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व्यापार में उनकी ईमानदारी की वजह से लोग उन्हें "अल-अमीन" (विश्वसनीय) और "अस-स़ादिक़" (सच्चे) कहकर बुलाते थे।
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बाद में उनका विवाह हज़रत ख़दीजा से हुआ, जो एक धनवान और सम्मानित महिला थीं।
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पैग़म्बर मोहम्मद साहब का पैग़म्बरी जीवन
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वही (प्रकाशना) की शुरुआत
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40 वर्ष की आयु में, जब वे हिरा नामक गुफ़ा में ध्यान करते थे, तो उन्हें अल्लाह की ओर से पहला संदेश (वही) प्राप्त हुआ।
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यह संदेश फ़रिश्ता जिब्रील (Gabriel) द्वारा लाया गया।
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यही से इस्लाम धर्म की नींव पड़ी।
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मुख्य संदेश और शिक्षाएँ
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अल्लाह एक है, केवल उसी की इबादत करनी चाहिए।
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इंसानियत, भाईचारा, समानता और न्याय पर जोर दिया।
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गरीबों, अनाथों और जरूरतमंदों की मदद को इबादत का हिस्सा बताया।
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झूठ, अन्याय, लालच और अत्याचार का विरोध किया।
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महिलाओं को सम्मान और अधिकार दिलाने पर बल दिया।
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कुरआन शरीफ़
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पैग़म्बर मोहम्मद साहब पर 23 साल की अवधि में धीरे-धीरे अल्लाह का संदेश उतारा गया।
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यही संदेश बाद में कुरआन शरीफ़ के रूप में संकलित हुआ, जो मुसलमानों की पवित्र किताब है।
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ईद-ए-मिलाद क्यों और कैसे मनाई जाती है?
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महत्व
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यह पर्व पैग़म्बर मोहम्मद साहब के जन्म और उनकी शिक्षाओं की याद में मनाया जाता है।
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मुसलमान इस दिन को शुक्राने और मोहब्बत के रूप में मनाते हैं, क्योंकि पैग़म्बर साहब को अल्लाह ने "रहमत-उल-लिल-आलमीन" (सारी दुनिया के लिए रहमत/करुणा) कहा है।
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रीति-रिवाज
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कुरआन की तिलावत और दुआएँ की जाती हैं।
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"नात" (पैग़म्बर की प्रशंसा में कविताएँ) पढ़ी जाती हैं।
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मस्जिदों और गलियों को रोशनी व सजावट से सजाया जाता है।
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जुलूस और धार्मिक सभाएँ आयोजित होती हैं।
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गरीबों और जरूरतमंदों को खाना, कपड़े और मदद दी जाती है।
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शिक्षा और संदेश
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ईद-ए-मिलाद केवल जन्मोत्सव नहीं है, बल्कि यह दिन हमें मोहम्मद साहब के आदर्श जीवन को अपनाने और उनकी शिक्षाओं पर चलने का अवसर देता है।
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यह पर्व हमें अमन (शांति), इंसाफ़ (न्याय), भाईचारा (भ्रातृत्व) और मोहब्बत (प्रेम) का संदेश देता है।
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✅ निष्कर्ष:
ईद-ए-मिलाद हमें याद दिलाती है कि पैग़म्बर मोहम्मद साहब केवल मुसलमानों के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी मानवता के लिए करुणा और मार्गदर्शन लेकर आए थे। उनका जीवन सत्य, न्याय और करुणा की मिसाल है, और यही कारण है कि उनका जन्मदिन दुनियाभर में श्रद्धा और सम्मान के साथ मनाया जाता है।
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