Friday, November 21, 2025

गुरु तेग बहादुर जी का शहीदी दिवस


 














गुरु तेग बहादुर जी का शहीदी दिवस हर वर्ष 24 नवंबर को अत्यंत श्रद्धा और सम्मान के साथ मनाया जाता है। यह दिन न केवल सिख इतिहास का, बल्कि पूरे भारतीय उपमहाद्वीप का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। गुरु तेग बहादुर जी नौवें सिख गुरु थे, जिन्हें “हिन्द की चादर” के रूप में जाना जाता है। इस उपाधि के पीछे उनका अद्वितीय बलिदान है—उन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर धर्म, मानवता और धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा की।

17वीं सदी में जब औरंगज़ेब के शासन में कश्मीरी पंडितों सहित कई समुदायों पर जबरन धर्मांतरण का संकट छाया हुआ था, तब गुरु तेग बहादुर जी ने अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध आवाज़ उठाई। कश्मीरी पंडित सहायता के लिए आनंदपुर आए, और गुरु जी ने निश्चय किया कि वे धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाएंगे। उन्होंने स्पष्ट संदेश दिया कि हर व्यक्ति को अपने धर्म का पालन करने का अधिकार है, चाहे वह किसी भी वर्ग, समुदाय या पंथ से हो।

दिल्ली ले जाए जाने के बाद गुरु जी से धर्म परिवर्तन का दबाव डाला गया, जिसे उन्होंने दृढ़तापूर्वक अस्वीकार कर दिया। अत्याचारों और बंदीगृह की कठोर परिस्थितियों के बावजूद, उनका साहस और अडिग संकल्प डिगा नहीं। अंततः 24 नवंबर 1675 को चांदनी चौक में गुरु तेग बहादुर जी ने मानवाधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा हेतु बलिदान दिया। उनका बलिदान दुनिया भर में धार्मिक स्वतंत्रता के सर्वोच्च उदाहरणों में से एक माना जाता है।

गुरु जी की शहादत से पूरे भारत को प्रेरणा मिली। उनके पुत्र, गुरु गोबिंद सिंह जी ने भी इस बलिदान की महानता को मानते हुए कहा—“धर्म हेतु साका जिन किया, सीस दिया पर सिर न दिया।” गुरु तेग बहादुर जी ने विश्व को यह संदेश दिया कि धर्म का अर्थ केवल पूजा-पद्धति नहीं, बल्कि न्याय, सत्य और मानवता की रक्षा है।

आज भी यह दिन हमें प्रेरित करता है कि चाहे परिस्थिति कितनी भी कठिन क्यों न हो, हमें सत्य और न्याय के मार्ग पर अडिग रहना चाहिए। गुरु जी का जीवन और शहादत सिख धर्म ही नहीं, बल्कि सार्वभौमिक मानव मूल्यों की धरोहर है।





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